राजस्थान स्थित सरिस्का भारतवर्ष के सर्वाधिक प्रसिद्ध बाघ संरक्षित क्षेत्रों में से एक रहा है। लगभग डेढ़ दशक पूर्व सारे बाघ, क्रूर शिकारियों के हाथों मारे गए। इस दुखद घटना का खुलासा हृदय विदारक था। इस घटना ने न सिर्फ भारत-वर्ष, बल्कि विश्व भर के वन्यजीव प्रेमियों को गहरा आघात पहुँचाया। असीमित वाद-विवाद, शंकाओं, तर्क-विर्तक, कानूनी व्यवधानों के चलते अन्ततः भारत के प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद कुछ बाघ रणथम्भौर से सरिस्का में लाकर बसाए गए। यह विश्व में अपने किस्म का पहला ही प्रयोग था जो कि पूर्णतः सफल रहा। आज सरिस्का में एक दर्जन से अधिक बाघ हैं। उपरोक्त और ऐसे ही दूसरे अनेक अभिनव प्रयोगों का वर्णन इस पुस्तक में ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जो सीधे रूप में इनसे जुड़ा रहा है। लेखक तत्कालीन क्षेत्र निदेशक, सरिस्का ने पुस्तक में सीधे अपने स्वयं के द्वारा किए गए अनुभवों का वर्णन अत्यन्त रोमांचक शैली में किया है। शिकारियों की धर पकड़, खनन माफिया के विरुद्ध कड़ी काररवाई से लेकर वन्यजीवों के लिए दुरुह जंगलों में पीने के पानी के स्थलों के विकास व ऐसे घने जंगलों में शिकारियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु सुरक्षा चौकियाँ स्थापित करने तथा जंगल को नुकसान पहुँचाने वाले ग्रामीणों व राजनेताओं के साथ झड़पों आदि प्रसंगों का वर्णन बेबाक शैली में विस्तार से किया गया है। निश्चय ही वन्यजीवों पर उपलब्ध संक्षिप्त साहित्य की पूर्ति में इस पुस्तक का योगदान सदा अविस्मरणीय रहेगा। न सिर्फ वन्यजीव प्रेमियों व प्रशासकों, विशेषतया वन्यजीव अभ्यारण्यों/राष्ट्रीय उद्यानों के प्रबन्धकों, बल्कि पर्यावरण व सामाजिक सरोकारों से जुड़ी संस्थाओं तथा विद्यार्थियों के लिए भी यह पुस्तक एक अमूल्य निधि साबित होगी।
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