रवींद्रनाथ टैगोर…यह नाम हमारे हृदय के बहुत क़रीब है, जिसे देखते और सुनते ही मन में सम्मान, विस्मय और प्रेरणा के भाव पैदा होने लगते हैं। साथ ही, इस बहुमुखी प्रतिभा के बारे में और ज़्यादा जानने की उत्सुकता बढ़ने लगती है। उनके जीवनीकारों ने टैगोर के कार्यों का विश्लेषण उनके जीवनकाल में किया है या फिर उनके कालक्रम के संबंध में किया है। यह पुस्तक तत्कालीन संदर्भों में उनके योगदान की कालक्रम के अनुसार प्रस्तुति करते हुए उन महत्वपूर्ण घटनाओं, चर्चाओं और उपेक्षित मुद्दों को भी प्रकाश में लाती है, जिनसे टैगोर को बेहतर तरीक़े से समझ पाने में मदद मिलती है।
एक पुत्र, भाई, पति और पिता के रूप में उनकी भूमिका सराहनीय रही। कवि, लेखक, दार्शनिक, चित्रकार, नृत्य-संयोजक और अभिनेता के रूप में उनकी उपलब्धियाँ चरमोत्कर्ष पर रहीं। परिवार, मित्रों, समकालीन लेखकों, कवियों तथा अपने पूर्ववर्तियों से उनके संबंध भी ठीकठाक रहे। देश-विदेश के समकालीन नेताओं से उनका पत्र-व्यवहार और जीवन के बारे में उनकी सोच एवं अभिव्यक्तियाँ सटीक रहीं। इस तरह प्रेम, विश्वास, समर्पण, उनके अधूरे सपनों और अपेक्षाओं आदि को बहुत रोचक तरीक़े से प्रस्तुत करते हुए यह पुस्तक कवि के दोनों पक्षों—असाधारण योग्यता-संपन्न व्यक्ति और सामान्य इच्छाओं वाला व्यक्ति—को सामने लाती है, जो इस गुण के कारण अपनी लाभ-हानि की परवाह किए बिना सामान्य लोगों के सुखों और दुखों को समझ सकता था। यही वह कारण है कि टैगोर जाति, सिद्धांत या पंथ की सीमाओं के पार, आज भी हम सबको प्रिय हैं।
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