उपन्यास का आरंभ एक ऐसे युवक के किस्से से होता है, जिसकी सुहागरात को ही उसकी सुंदर पत्नी की हत्या कर दी जाती है । इससे भी ज़्यादा विचित्र बात यह है कि उस निरपराध युवक को अपनी ही पत्नी की हत्या के आरोप में कैद करके जेल में डाल दिया जाता है। अपनी बेगुनाही साबित करने और अपनी पत्नी के हत्यारे को खोजने के लिए, उसका एकमात्र सुराग एक ट्यूलिप का बल्ब है, जो उसे अपनी मृत पत्नी की हथली में मिला था। युवक अपनी असली पहचान से अनजान है कि–वह एक शहज़ादा है, एक सुल्तान का बेटा, जो महल के बाहर पला-बढ़ा है। राजसी सत्ता के घेरे में उसकी मौजूदगी की अफवाह को लेकर बाद में एक षड्यं त्र रचा जाता है। जब पूरी दुनिया तुर्क साम्राज्य की सैन्य, राजनीतिक और कलात्मक उपलब्धियों से अत्यंत प्रभावित थी, इस्कैं दर पाला ने उस दौर के इस्तांबुल के वैभव और दुराचारों का बेहद मोहक चित्रण किया है।
इस्तांबुल का ट्यूलिप AIS (Advanced Information Sheet)
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